योग रहस्य. पार्ट 2

योग चित्त वृति निरोध. चित्त सर्वव्यापी तत्व  हे. पूरा विश्व चित्त और चैतन्य का विलास  है. चैतन्य भीतरी सभानता की स्तिथि  हे. चित्त यानि ध्यान. चेतना का अवधान. चैतन्य एक अचल स्तिथीहे.  जब ध्यान कही  कई दिशा मे खींचती  ऊर्जा  हे. प्रकृतिकी  84 लाख  योनिया ये चित्त और चैतन्य विलास का माध्यम बनता हे. पर चैतन्य ये अनुभव की बाबत हे इस लिए  अपनी पकड़ मे नहीं आती. कई वस्तु के व्यक्ति मे प्यार जागता  हे. तब तोड़ा बुद्धि  से समज  आता हे, पर  प्यार असल मे क्या हे अनुभव मे आता हे तब समज मे आता he. एक तत्व हे अटेन्सन यानि ध्यान. आप कहते हो  बच्चो को ध्यान दीजिये पढ़ने  मे. रसोई मे जाके कहते हो रसोई मे ध्यान दीजिये. ऐसे ध्यान देने की चीज पर ध्यान जाता है.तब योग का आंरभ  होता हे. ये जो ध्यान देने की बजाय जो होता हे वो यांत्रिकता he. अपना चित्त यांत्रिक जैसे ज्यादा काम करता हे. चित्त और चैतन्य शरीर मे अलग अलग काम करते हे. इसके लिए जो ऊर्जा चाहिए  उसे कहते हे प्राण ऊर्जा.मानव मे ये ऊर्जा ऐसे कम करती हे. हम बाजार मे घूमने गए कोई दुकान मे से गरमा गरम फरशान  सुगंध आती हे तब हमारा ध्यान खीचता he.अच्छी  कोई चीज देखि तो अपना ध्यान खींचता हे. वहां वहां जीवन की प्राण ऊर्जा सक्रिय होती he. अस्तित्व  मे ये ध्यान की ऊर्जा हे वो सूक्ष्म  से अति शुक्ष्म हे. योग मे ये ऊर्जा  के निरोध की बात हे. मानव मे मे मन का विकास हुआ हे जो पशु पक्षी मे नहीं हुआ. गुर्जिएफ़  इसको विचार केंद्र का विकास कहते हे. बच्चा जन्म जात  केंद्र के साथ पैदा होता हे. चलना सीखे  यानि उसका चालनकेन्द्र (मूविंग सेंटर )विकास होता हे. काम करना सीखे  इसके साथ  विचार केंद्र जागृत  होता हे. वो स्टडी करना सीखे. उसको समय का बोध  होता हे. समय का बोध हुआ यानि चित्त की जो ऊर्जा  हे वो भुत  और भविष्य  की और बहने लगती हे. उसका ध्यान भूतकाल की यादो मे और भविष्य  की कल्पना मे जाने लगता हे. ऐसे मानव का जीव यहाँ वहां भटकने  लगता he. इस भटकने  के नाम को वियोग कहते he. अस्तित्व परम तत्व हे. वो अभी और यहाँ हे. वो सतत और सर्व व्यापी हे. आ अस्तित्वके   साथ  मेल हो उसे योग कहते he. Hear and now. Baki new post me

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